राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य || Rajasthan Wildlife Sanctuary

राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य || Rajasthan Wildlife Sanctuary

– भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम मौर्य वंश के शासक अशोक ने वन्यजीवों के संरक्षण का प्रावधान किया था।
– राजपूताने की पहली रियासतों टोंक रियासत थी।
– जिसमें 1901 में शिकार को प्रतिबंधित किया।
– स्वतंत्रता से पहले राजपूताने को शिकारियों का स्वर्ग कहा गया है।
– वर्तमान में वन्यजीवों के दृष्टिकोण से असम के बाद राजस्थान का दूसरा स्थान है।
– स्वतंत्रता के पश्चात वन्यजीव राज्य सूची का विषय था परंतु 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा इससे समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
– संविधान के भाग 4 का अनुच्छेद 48 (क) भाग 4 (क) का अनुच्छेद 51(क) वन्यजीवों के संरक्षण का प्रावधान करते हैं।
– केंद्र सरकार ने वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 9 सितंबर, 1872 को लागू किया, जबकि राजस्थान सरकार ने इस अधिनियम को 1 सितंबर, 1973 से लागू किया।
– भारत में 103 राष्ट्रीय उद्यान, 528 अभ्यारण्य है।
-1972 में पहली बार बाघों की गणना की गई, बाघों की स्थिति को गिरता देख केंद्र सरकार ने 1973 में जिम कार्बेट,उत्तराखंड से बाघ परियोजना की शुरुआत की।
– जबकि राजस्थान में बाघ परियोजना की शुरुआत 1973- 74 में रणथम्भौर से हुई।
– मोर, ऊँट को राज्य धरोहर घोषित किया गया है।
– राजस्थान में तीन राष्ट्रीय उद्यान, तीन बाघ परियोजनाएं व 26 अभ्यारण है।

● “राष्ट्रीय उद्यान”:-
1. रणथम्भौर
2. केवलादेव
3. मुकुन्दरा हिल्स

● “बाघपरियोजना”:-
1. रणथम्भौर
2. सरिस्का
3. मुकुंदरा हिल्स

– राष्ट्रीय उद्यान वे वन्यजीव क्षेत्र होते हैं जिनकी देखरेख केंद्र सरकार के द्वारा की जाती है।

● “रणथम्भौर”:- सवाईमाधोपुर,
– प्रारंभ में यह जयपुर रियासत का शिकारगाह था।
– 1955 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया।
– यह अभ्यारण्य भौगोलिक दृष्टिकोण से अरावली व विध्यांचल पर्वत माला के संगम स्थल पर स्थित है।
– तथा इस क्षेत्र पर गांधी परिवार विशेष रूप से घूमने आता है।
– 1973 -74 में यहां पर राजस्थान की पहली बाघ परियोजना चलाई गई।
– तथा 1 नवंबर, 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
– जोधपुर निवासी कैलाश सांखला को टाइगर मैन ऑफ इंडिया कहा जाता है।
– रणथम्भौर को भारतीय बाघों का घर लैंड(land of tiger) भी कहा जाता है।
– इसी उद्यान के बाघों से श्योपुर मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य को आबाद किया जाएगा।
– रणथम्भौर में 1996 में विश्व बैंक की सहायता से इंडिया इको डेवलपमेंट कार्यक्रम चलाया गया।
– इस उद्यान में काले गरुड़ भी देखने को मिलते हैं।
– यहां पर ही टाइगर सफारी पार्क, क्षेत्र प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय आदि स्थित है।
– रणथम्भौर में जोगी महल, सुपारी महल, राजस्थान का एकमात्र त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर स्थित है।
– इसी उद्यान में पदम तालाब, राजबाग झील, मलिक तालाब, गिलाई सागर, लहापुर झील आदि जल स्रोत स्थित है।

 ● “केवलादेव घना पक्षी विहार”:- भरतपुर
– मोखी राजकुमार हरभान ने इसे शिकारगाह के रूप में विकसित किया था।
– 1956 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया तथा 27 अगस्त, 1981 को इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया गया।
– यह विश्व के शीर्ष 10 उद्यानों में शामिल है।
– 1985 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
– वर्तमान में यह रामसर साइट के रूप में घोषित है।
– इस वन्यजीव क्षेत्र के मध्य भगवान शिव / केवलदेव का मंदिर स्थित हैं।
– इसी कारण इसका नाम केवलादेव पड़ा है।
– यह भारत के सुनहरा त्रिकोण पर्यटन परिपक्व ( दिल्ली-आगरा -जयपुर )के क्षेत्र में है । (NH-11 के समीप)
– इस उद्यान में लगभग 400 देशी विदेशी पक्षी पाए जाते हैं।
– यह उद्यान साइबेरियन सारस, लाल गर्दन वाले तोते के लिए प्रसिद्ध है।
– इसे ही एशिया की सबसे बड़ी प्रजनन स्थली, पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है।
– पक्षी विज्ञान का जनक / “The bird man of india”:- डॉ. सलीम अली
– डॉ. सलीम अली पक्षी पक्षी अनुसंधान केंद्र कोयंबटूर में स्थित है।
– केवलादेव में पाइथन पॉइंट नामक स्थान पर अजगर देखे जा सकते हैं।
– अजान बांध को केवलादेव की जीवन रेखा कहा जाता है।
– इस उद्यान में कदंब के वृक्ष सर्वाधिक संख्या में पाए जाते हैं।
– तथा यहां पर ही उदबिलाव / जलमानुस देखने को मिलते हैं।

● “मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान”:- कोटा- झालावाड़
– प्रारंभ में इस वन्यजीव क्षेत्र को दर्रा अभ्यारण के नाम से जाना जाता था।
– 2004 में दर्रा अभयारण्य का नाम परिवर्तित करके ‘राजीव गांधी नेशनल पार्क’ नाम रखा गया।

– 2006 में वसुंधरा सरकार ने इसका नाम परिवर्तित करके मुकुन्दरा हिल्स रखा।
– 9 जनवरी, 2012 को इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया गया।
– तथा 10 अप्रैल,2013 को यहाँ पर राजस्थान की तीसरी बाघ परियोजना शुरू की गई।
– सर्वाधिक सारस इसी उद्यान के क्षेत्र में पाये जाते हैं ।
– इस उद्यान में हीरामन तोता / गागरोनी तोत / हिंदुओं का आकाशलोचन पाया जाता है।
– यह तोता मानव की तरह हुबहू आवाज निकाल सकता है।
– इस उद्यान में हूणों द्वारा बनाया गया गुप्तकालीन बाड़ौली का शिव मंदिर स्थित है ।
– इस उद्यान में रावणा महल, गागरोन का किला, भीम चवरी स्थित है।
– इस उद्यान में अबली मीणी का महल स्थित है।
– जिसे राजस्थान का दूसरा तथा हाड़ौती का ताजमहल भी कहते हैं।

● Note:- इस उद्यान में वन्यजीवों को देखने के लिए रियासत कालीन अवलोकन स्तंभ स्थित है। जिन्हें औदिया कहा जाता है। – रामसागर, बोड़ा तलाई झामरा, अमझार आदि।
– इसके पास में सांभर, नीलगाय, चीतल, हिरण और जंगली सूअर पाए जाते हैं।
– दर्रा अभयारण्य की मुकंदरा पहाड़ियों में आदिमानव के शैलाश्रय एवं उनके द्वारा चित्रांकित शैलचित्र मिलते हैं।

● “सरिस्का”:- अलवर
– स्वतंत्रता से पहले यह वन्यजीव क्षेत्र अलवर का शिकारगाह था।
– अलवर महाराजा तेज सिंह ने वन एवं वन्य जीवो पर आंकड़े एकत्रित करवाए जिन्हें इतिहास में पीली किताब के नाम से जाना जाता है।
– 1 नवंबर 1955 को इसे अभयारण्य घोषित किया गया।
– 1978 में सरिस्का राजस्थान की दूसरी बाघ परियोजना शुरू की गई।
– 2004 में बाघों की गणना के दौरान यहां बाघों की स्थिति सुधरी।
– अतः यह क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा सुनीता नारायण मल्होत्रा कमेटियों का गठन हुआ, जिनकी सिफारिश पर रणथम्भौर से पहली बार बाघों का विस्थापन सरिस्का में किया गया।
– पहली बाघिन मछली थी।
– ब्रिटिश संस्थान की ओर से मछली बाघिन को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया।
– बाघों की शिकारी संसार चंद्रकला रघु की शिकारी संसार चंद कलार बावरिया।
– यहाँ राष्ट्रीय पक्षी मोर सर्वाधिक संख्या में पाए जाते हैं।
– हरे कबूतर, लंगूर, बंदर स्टैंडर्ड पर राहुल सेंड ग्राउंड इंडियन पिता आदि पक्षी यहां पाए जाते हैं।
– सरिस्का में कासना तथा काकनवाड़ी नामक पठार स्थित हैं।
– काकनवाड़ी पठार पर काकनवाड़ी का दुर्ग स्थित है, जिसमें औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह को कैद करके रखा था।
– सरिस्का में स्थित प्रमुख पर्यटक स्थल पांडुपोल का शिव मंदिर, भर्तहरि मंदिर, ऋषि पाराशर की स्थली, नीलकंठ महादेव का मंदिर, ताल वृक्ष आदि।

Note:- वर्तमान राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण सरिस्का है।
– 26 जून, 2012 को सरकार ने इसकी स्थापना की तथा इसका क्षेत्रफल लगभग 3 वर्ग किलोमीटर है।
इसमें सरिस्का पैलेस होटल महाराजा जयसिंह द्वारा 1892 से 1890 के मध्य बनवाया गया।

 ● “गजनेर अभयारण्य”:- बीकानेर
– यह अभयारण्य बटबड पक्षी(इम्पीरियल सेन्डगाउज) / रेत का तीतर के लिए प्रसिद्ध है।
– इसी अभयारण्य के क्षेत्र में जेठा मुठ्ठा पीर की दरगाह स्थित है।

● “राष्ट्रीय मरू उद्यान”:- जैसलमेर, बाड़मेर
– 8 मई, 1981 को मरु उद्यान की स्थापना।
– यह क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से सबसे बड़ा अभयारण्य है। (3162 वर्ग किलोमीटर)
– इस अभयारण्य के क्षेत्र में जैसलमेर जिले में आकल वुड फॉसिल पार्क स्थित है।
– जहाँ 18 करोड वर्ष पुराने 25 काष्ठ केजीवाश्म प्राप्त हुए हैं।
– इस अभयारण्य को गोडावण पक्षी की शरणस्थली कहा गया है।
– गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी है तथा इसे ‘ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड / सोहन चिड़िया / शर्मिला पक्षी’ आदि उपनामो से जाना जाता है।
– राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात राज्य में भी गोडावण पक्षी पाया जाता है।
– इस अभयारण्य में सेवण, धामण, करड, अंजन विभिन्न घासे पाई जाती हैं।
– इस अभयारण्य में विभिन्न विषैले सर्प पाए जाते हैं- पीवणा, कोषरा, रसलसवाइपर, स्मैण्ड वाइपर आदि ।

● “Note”:- पीवणा पश्चिमी राजस्थान में पाए जाने वाला सबसे विषैला सर्प हैं। जो श्वास के माध्यम से व्यक्ति में जहर पहुँचाता है।
– इस अभयारण्य में जंतु समूह की एंडरसन टॉड प्रजाति पाई जाती है।
– इस अभयारण्य में भूमिगत पाइपों के द्वारा टैंक में जल को एकत्रित किया जाता है जिसे गजलर कहा जाता है।

 ● “वन विहार अभयारण्य”:- धौलपुर
– धौलपुर महाराजा उदयभान सिँह ने इसे स्थापित करवाया था ।
– 1955 में स्थापित इस अभयारण्य में बघेरा, जरख, रीछ आदि वन्यजीव देखने को मिलते हैं।

● “जयसमंद अभयारण्य”:- उदयपुर
– 1955 में स्थापित इस अभयारण्य में बघेरा, लकड़बग्घा, सियार आदि वन्य जीव देखने को मिलते हैं।

● “माउंट आबू अभयारण्य”:- सिरोही
– यह राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी अभयारण्य है।
– यहाँ विशेष प्रकार की घास कारा पाई जाती है।
– ब्रिटिश काल में यहां पर लेन्टाना नामक झाड़ी को रोपित किया गया था।
– इस अभ्यारण्य के क्षेत्र में कोडरा बांध स्थित है।
– यह अभयारण्य जंगली मुर्गों के लिए प्रसिद्ध है।
– विश्व का एकमात्र पादप वनस्पति डिकिलपटेरा यहीं पर पाई जाती है ।
– इस अभयारण्य में औषधीय पादप शोध केंद्र स्थित है। तथा यहां पर ही राज्य सरकार द्वारा मृग वन विकसित किया जा रहा है।
– केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2009 में माउंट आबू को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया है।

● “कुंभलगढ़ अभयारण्य”:- उदयपुर, पाली, राजसमंद
– स्थापना :-1971
– इस अभ्यारण्य को भेड़ियों की प्रजनन स्थली कहा गया है।
– इस अभयारण्य के क्षेत्र में ही रणकपुर के क्षेत्र में जैन मंदिर स्थित है।
– यह अभयारण्य का क्षेत्र महाराणा प्रताप की जन्मस्थली, उदय सिंह की पालन स्थली तथा कुंभा की मृत्यु स्थली के रूप में चर्चित रहा हैं।
– इस अभयारण्य क्षेत्र से ही बनास व साबरमती नदियों का उदगम होता है। परंतु इन दोनों नदियों की दिशाएं अलग – अलग है।

● “ताल छप्पर / छापरताल”:- सुजानगढ़, चूरु
– स्थापना :- 1962
– यह अभयारण्य काले हिरण व कुर्जा पक्षी लिए प्रसिद्ध है।
– कुर्जा पक्षी खींचण गाँव जोधपुर में भी देखने को मिलता है।
– इस अभयारण्य में प्राचीन समय में राव बीदा ने अपना निवास स्थान बनाया था अतः इसे बीदावाटी के नाम से जाना जाता है।
– महाभारत काल में यह क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य का स्थान रहा है। अतः इसे द्रोणपुर के नाम से भी जाना जाता है।
– इस अभयारण्य के क्षारीय भूमि पर लाना नामक झाड़ी उत्पन्न होती है, तथा इस अभयारण्य में भैसोलाव, डूलौलाब प्राचीन तलैया है।
– इस अभयारण्य में ओबिया साइप्रस नामक नरम घास देखने को मिलती है।

●”Note”:- हंस प्रजाति के पक्षियों में सबसे लाडला कहा जाने वाला पक्षी ग्रैनलैण्ड गुंज इसी अभयारण्य में पाया जाता है।

● “नाहरगढ़ अभयारण्य”:- जयपुर
इसकी स्थापना 1980 में कई गई।
– इस अभयारण्य में राजस्थान का प्रथम जैविक उद्यान विकसित किया गया है।

● “जमुआ रामगढ़ अभयारण्य”:- जयपुर
– इस अभयारण्य की स्थापना 1982 में की गई।
– इस अभयारण्य में मुख्यत धोंक के वन पाए जाते हैं।

● “रामगढ़ विषधारी अभयारण्य”:- बूंदी
– स्थापना:- 1982
– यह अभ्यारण्य जंगली कुत्तों के लिए प्रसिद्ध है।
– यह राजस्थान को एक मात्र अभयारण्य है जहां कोई बाघ परियोजना ना होते हुए भी बाघों को देखा जा सकता है।

● “भैंसरोडगढ़ अभयारण्य”:- चित्तौड़गढ़
– चित्तौड़गढ़ रावतभाटा मार्ग पर स्थित 5 फरवरी,1983 को इसकी स्थापना की गई।
– यहां पर मानदेशरा का पठार स्थित है।
– घड़ियाल इसकी अनुपम धरोहर है।

● “शेरगढ़ अभयारण्य”:- बारां
– स्थापना:- 1983
– इस अभयारण्य को सांपों की शरण स्थली कहा जाता है।

● “बंध बारेठा अभयारण्य”:- भरतपुर
– स्थापना:- 1985
– इस अभयारण्य को परिंदों का घर कहा जाता है।

● “सज्जनगढ़ अभयारण्य”:- उदयपुर
– सन् 1987 में अभयारण्य घोषित किया गया।
– यह नीलगाय व लोमड़ी के लिए प्रसिद्ध है ।
– वर्तमान में यह राजस्थान का दूसरा सबसे छोटा अभयारण्य है।

 ● “सीता माता अभयारण्य”:– – इसका विस्तार प्रतापगढ़, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ क्षेत्र में हैं।
– इसकी स्थापना 1979 में कई गई।
– इस अभयारण्य में एन्टीलोप प्रजाति का दुर्लभ जीव चौसिंगा एवं उड़न गिलहरी, उड़न छिपकली, पाई जाती हैं।
– इस अभयारण्य को चीत्तल की मातृभूमि कहते हैं।
– आयुर्वेद के अनुसार हिमालय के बाद सर्वाधिक औषधियाँ का क्षेत्र यही अभयारण्य रहा है।
– इस अभयारण्य में सीता माता का मंदिर / आश्रम स्थित है तथा यहां पर ही लव-कुश नामक दो जल स्रोत हैं।
● Note:- इस अभयारण्य में मुख्य रूप से सागवान के वन पाए जाते हैं तथा यहां सर्वाधिक जैव विविधता देखने को मिलती है।
– इस अभयारण्य में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ अमावस्या को मेला भरता हैं।

● “चंबल अभयारण्य”:-
– स्थापना 1978 – 79
– यह अभ्यारण चंबल नदी के क्षेत्र पर स्थित है अतः यह जलीय अभयारण्य है।
– यह अभ्यारण्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश राज्य में फैला हुआ है।
– अतः राजस्थान का अंतरराज्यीय अभ्यारण है।
– इस अभयारण्य में कछुओं की आठ प्रजातियां पाई जाती हैं।
– इस अभयारण्य को घड़ी घड़ियालों की प्रजनन / शरणस्थली कहा गया है।
– इस अभयारण्य में गांगेय सूस, चपल गंगाई, डॉल्फिन आदि जलीय जीव पाए जाते हैं।
● Note:- चंबल अभयारण्य अरावली व विध्यांचल पर्वतमाला में ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट का निर्माण करता हैम

● “रावली टॉडगढ़ अभ्यारण्य”:-
अजमेर- पाली- राजसमंद
-इसकी स्थापना 1983 में कई गई।
– इस अभयारण्य में बघेरा, रीछ, जरख आदि वन्यजीव देखने को मिलते हैं।

● “सुंधा माता अभ्यारण”:-
भीनमाल, जालौर
– यह राजस्थान का पहला और देश का चौथा भालू अभ्यारण्य है।
– जिसे 2010 में स्थापित किया गया। इसमें लगभग 300 भालू विचरण करते हैं।
– राजस्थान का पहला रोप – वे इसी अभ्यारण्य के क्षेत्र पर स्थित है।

● “फुलवारी की नाल”:- उदयपुर
– इसकी स्थापना 1983 में की गई।
– इस अभ्यारण के क्षेत्र में महाराणा प्रताप ने काफी समय व्यतीत किया था
– देश का पहला ह्यूमन एनाटॉमी पार्क इसी अभयारण्य में स्थित है।

Note:- इस अभयारण्य में सफेद मूसली, चिश्मी नामक दुर्लभ औषधियां पाई जाती हैं।

● “महत्वपूर्ण तथ्य”:-
– सांभर झील में सर्दियों में राजहंस पक्षी बड़ी मात्रा में आते हैं।
– जैव विविधता के लिए साबेला जलाशय डूंगरपुर का प्रसिद्ध है।
– देश का पहला मोर अभ्यारण झुंझुनू में प्रस्तावित है।
– राजस्थान देश का पहला राज्य है जिसने वन एवं पर्यावरण नीति को बनाया है।
– राजस्थान का पहला मत्स्य अभयारण्य बड़ी तालाब उदयपुर में स्थित है।
– रेगिस्तानी वन्य जीव प्रजातियों को एक ही स्थान पर रखने के लिए डेजर्ट जू की स्थापना बीछवाला बीकानेर में की गई है।
– राजस्थान का पहला गिद्ध सरंक्षण क्षेत्र जोहर बीड़ बीकानेर में प्रस्तावित है।
– राजस्थान का पहला गंधर्व अभयारण्य डूंडलोद झुंझुनू में प्रस्तावित है।
– राजस्थान में world-class जू नाहरगढ़ ( जयपुर) जैविक उद्यान में बन रहा है।
– वर्तमान भारत में चीता विलुप्त हो चुका है। केंद्र सरकार अफ्रीका से सीता लाने का प्रस्ताव ला रही है।
– तथा देश का पहला चीता अभ्यारण्य जैसलमेर में स्थापित किया जा सकता है।
– वर्तमान राजस्थान में 7 मृग वन है।
– राजस्थान में प्रारंभ में पांच जंतुआलय थे परंतु न्यायालय के आदेश के बाद बीकानेर जन्तुआलय को बंद कर दिया गया।
अतः वर्तमान में चार जंतुआलय हैं।
– वर्तमान राजस्थान में 33% शिकार निषेध क्षेत्र है, सर्वाधिक आखेट निषेध क्षेत्र जोधपुर में 7 हैं।
– सबसे छोटा आखेट निषेध क्षेत्र कनकसागर बूंदी में स्थित है।
– जबकि सबसे बड़ा आखेट निषेध क्षेत्र संवतसर चूरू में स्थित है।
– राजस्थान सरकार बजट घोषणा 2015-16 में वन – धन योजना शुरू की गई।
– यह योजना रणथम्भौर – कुंभलगढ़,मरू उद्यान, माउंट आबू आदि क्षेत्रों में चलाई जा रही है ।
– इनका उद्देश्य स्थानीय लोगों की वन पर निर्भरता कम करना है तथा उन्हें रोजगार उपलब्ध कराना है।

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